2017 - Thank You - Part 2


Anonymous 1

Scored decently after a few attempts and desperation. Moved out of the job on a very optimistic note and came out of a low phase.
Published a couple of books, received encouraging response.
Moved to a new city and made a fresh and awesome start. Got amazing opportunities professionally, academically and socially. Made great great great friends, partied insanely and traveled around a lot.
Things have been too perfect. All of this is like a dream I don't want to end.

Anonymous 2

This year started on an okayish note since I was in the middle of applying for my MBA in the US. I was extremely apprehensive about applying to all the colleges as my score wasn't great and the application fee for each college was too much. But somewhere I still wanted to give it a try. This year since I was at home I developed a very unique relationship with myself. I fell in love with myself. I started enjoying my own company and dependency on external factors for happiness reduced. I also discovered that my real strength was my family. While, I was applying for jobs I also got good opportunities to freelance. I traveled to not so famous tourist places like Ahmedabad and Gandhinagar with my sister. I also took my first trek - after all its never too late to try different things. I also saw myself grow a lot in my Buddhist practice. All this while, I was fortunate enough to get interview calls from some of the best companies. I also got my opinion pieces published in some of the best national publications. And I finally met Anant after 10 years!! This year ended with me relocating to a completely new city and a new job. While writing this review, I just realised how wonderful this year has been. I hope that next year is a lot more better and I also get to attend Anant's wedding :P Thanks, Sharma for sitting on our heads for this amazing exercise! Happy 2018

Anonymous 3

एक और वर्ष बीत गया। हर वर्ष की तरह बहुत से नए अनुभव हुए, बहुत कुछ सीखा, और अनेक ग़लतियाँ भी करी। इस बार मैंने अपना वार्षिक सारांश साल के शुरू में ही लिखने का ठान लिया था। यह संकल्प भी सारे नव वर्ष संकल्पों की तरह फरवरी से पहले ही कहीं गुम हो चुका था।वार्षिक सारांश तोह पूरा नहीं लिखा परन्तु उस में लिखी  चीज़ें मैंने थोड़ी काम थोड़ी ज़्यादा कर ही ली। जहाँ साल में १२ किताबें पढ़नी थी वहां ४ पढ़ी, जहाँ ३ शोध आलेख लिखने थे वहां एक ही लिख पाया। इस वर्ष अपने काम में नए विषयों पे जांच भी करनी थी, वह तोह नहीं हो पायी।  हर वर्ष में कोई न कोई हरकत निस्वार्थ भाव से करता ही हूँ. इस वर्ष ऐसी कोई बात याद नहीं आती. अभी तक कभी ध्यान नहीं गया था इस पर, अगले वर्ष ज़रूर ध्यान रखूँगा की दुबारा ऐसा न हो.

इस वर्ष मैंने बहुत तस्वीरें ली तोह अनुभवों का वर्णन न करके मैं तस्वीरों को ही कहानी बताने देता हूँ। कुछ मुख्य सुर्खियां ज़रूर कहूंगा;  इस वर्ष मेरी विदेश यात्रा की संख्या १४ पहुँच गयी; मैंने अपनी पहली गाडी भी ली, और अपना पहला शोध आलेख वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रस्तुत करा।




इस वर्ष पहली बार ऐसा लगा की कुछ गलती हो गयी। अभी तक जो भी करना था उसके लिए एक सीधा मार्ग था, यह पढ़ो, यह खाओ, यह करो, तोह अव्वल पारिणाम आएंगे। मगर अब आगे कोई परीक्षा नहीं दिखती, तोह तैयारी किसकी करें। एक ही स्पष्टीकरण समझ आता है, जीवन भर निरंतर ही साधना करनी है। यह बहुत ही कठिन कार्य है एक ऐसी पीढ़ी के लिए जिसने उम्र भर तैयारी टी-ट्वेंटी के लिए की और अब पता चल रहा है परीक्षा टेस्ट-मैच खिला के ली जायेगी और आपको तब तक बैटिंग करनी है जब तक  सामने वाली टीम गेंद दाल रही है। 


ऐसे अनेक विषय हैं जिनपे पहले कभी ध्यान नहीं गया। पहली बार ईश्वर के ना होने पे यकीन होने लगा। यह बहुत ही डरावना एहसास है, क्योंकि अब मेरे पे चौबीस घंटे निग्रहणी रखने वाला सिर्फ मैं ही हूँ। केले का छिलका कूड़ेदान की जगह साथ वाले के घर के सामने डाला तोह भी चलेगा।  अगर मांस खा लिया तोह भी किसी को नहीं पता चलेगा, कोई हिसाब नहीं रख रहा की आपने कितनी गाय खा ली।  और कोई इसका भी हिसाब नहीं रख रहा की आपने निस्वार्थ भाव से किसी गरीब को खाना खिलाया। शायद इसलिए अच्छा ही है की बचपन में हमें भगवान् और धर्म के माध्यम से शिष्ट व्यव्हार की सीख दी जाती है। 

हम लोग अपना बहुत समय इंटरनेट पर बिता रहे हैं, एक मुख्या कारण है की यह हमें कभी भी रसहीन नहीं रहने देता। आपको एक हास्य चलचित्र देखना है तोह १०० मौजूद हैं। आपको अपने मित्र की खबर लेनी है जो विदेश में यात्रा कर रहा है मिनटों में मुमकिन है, और साथ ही साथ आप उस देश की सारी खबर ले सकते हैं। इस सदैव-दिलचस्प यंत्र की तुलना हमारे दोस्त माँ-बाप, भाई बेहेन कभी भी नहीं कर पाएंगे। यह बहुत ही चिंता का विषय है, अगर यंत्र आदमी से ज़्यादा दिलचस्प हो गए हैं।

बहुत वर्षो से मुझे यह बात चुभती थी की मेरा वजन ज़्यादा है और मैं अपनी उम्र के हिसाब से तंदुरस्त नहीं हूँ।  इस वर्ष मैंने लगभग १५ किलो वजन घटाया और अपने खाने पीने में भी अंतर लाया, अब मैं जहाँ तक हो सके चीनी का सेवन टालता हूँ । बहुत ही आश्चर्य हुआ जब यह अहसास किया की सिर्फ अपना दैनिक भोजन नियमित करने से सेहत पे कितना फरक पद सकता है।  मैं अपने सब दोस्तों, परिवार वालों को सलाह देता हूँ की अपने भोजन पे ध्यान दें।

इस वर्ष कुछ महत्त्वपूर्ण  फैसले लेने थे, जो अगले वर्ष के लिए छोड़ दिए हैं। शायद अगले वर्ष थोड़ी समझ और हो, थोड़े फैसले आसान हो जाए। क्या सारा जीवन अकेला बिताया जाया सकता है ? क्या मैं अमेरिका में रहूँगा या वापस देश लौट जाऊँगा ? क्या मुझे माँ बाप के साथ रहना है या अलग, इसके बारे में तोह सोचना भी हमारे समाज में निंदनीय है।

-किंकर्त्तव्यविमूढ़

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