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कल्पना

फिर कहानी अधूरी रह गयी  बात बनते बनते रह गयी  फिर वास्तविकता समझे थे जिससे वोह कल्पना बन कर रह गयी फिर गरजते  कागज़ों की उम्मीद  बरसते बरसते रह गयी  फिर मुख्य नायिका वोह  किसी और किताब में बनकर रह गयी  फिर मलाल कैसा, दुःख किस बात का  फुव्वारे में स्याही अनन्त बाकी रह गयी