ऐ दिल


खुद में खोये हुए, क्यों तू चुप्पी साधे बैठा है
छोड़ खेल लुक्का-छुप्पी का, ऐ दिल, बाहर दौड़ कर तोह देख

पतझड़ से कैसा इतराना, वोह तेरे डर से कब रुका है
मौसम वसंत का है, ऐ दिल, कहीं खिल कर तोह देख

मन की ना सुनना, यह ख़ुशी ढूंढ़ना नहीं
बस ग़म से बचना जानता है, ऐ दिल, कहीं लग कर तोह देख

पिछली रेल गाडी माना तेरी, पटरी से उतर गयी
दिल्ली की गलियां दूर नहीं, ऐ दिल, उड़ान लेकर तोह देख

महीने काफी यूँ ही बिता दिए, क्या यह आज़ादी रास आयी
क्या पाया तूने, ऐ दिल, क़ैदी अनन्त हो कर तोह देख

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