फिर वही


याद है मझे
बारिश बनकर तुम पहले भी आई थी
हर साल नहीं हर मौसम नहीं
पर कभी तोह आई थी

इस बार भी शायद तुम आओगी
पर तुम नहीं  जानती
जाना मुझे दूर है
रुकना तुम्हारा भी कहाँ दस्तूर है

इसलिए सोचता हूँ
थोड़ा डरता हूँ
दरवाज़े ढाल दूँ
खिदिकियां भी बंद कर लूँ

मगर फितरत तो मेरी
उस हवा जैसी है
जो बिन कहे बिन पूछे
दरवाज़े खिड़कियां तोड़ देती है

तुम फिर बरस जाना
मैं फिर भीग जाऊंगा

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