सेंट्रल पार्क - १


आज देखा छातों  का
एक खेल निराला
कुछ शैतानी भरा
कुछ भोला भला

एक लड़का और एक लड़की
अपने अपने छातों के नीचे
कुछ पुराने अफ़साने याद करते
बैठे हस खेल रहे थे

एक और लड़का लड़की
कल तक थे जिनके छाते शायद अलग
आज उनकी तकदीर के साथ
छाते भी एक थे

एक कोने में जब पड़ी नज़र
पाये दो लोग छाते से छुपे हुए
ना जाने कौनसी चाहतें
रिम झिम पूरी कर रह थे

कुछ ऐसे भी थे कमाल
जो छाते को अलग रख कर
खुद ही भीगे भीगे
बारिश को चख रहे थे

एक छाता कहीं एकेला भी रखा था
ना जाने उससे कोई छोड़ गया
या फिर खुद ही आज़ाद होकर
हवा के साथ उड़ा था चला आया

अब जो तुम पूछो हमसे गर
की हमारा वहां क्या काम था
हम मुस्कुरा कर बता देंगे सच
वहां छाते कौन बेच रहा था

Comments

Popular posts from this blog

A GOODBYE TO GOODBYE

FIRST LOVE

PENCIL , PAPER AND ERASER